गुरू नानक देव जी का जीवन -
गुरू नानक जयंती का महत्व उनके जीवन और उनके विचारों को समझने में है। गुरू नानक देव जी का जन्म लगभग 1469 को तलवंडी ‘नानक साहिब’ में हुआ था। उनके पिता तलवंडी गांव में ही एक अकाउंटेंट थे। नानक की एक बड़ी बहन थी, जिनकी शादी 1475 में जय राम से हुई थी।नानक ने अपने जीवन के पहले वर्षो में अपनी बहन और बहनोई के साथ बिताए और 16 साल की आयु में दौलत खान लोदी के यहां काम करना शुरू किया। उनका विवाह 24 सितंबर 1487 को माता सुलक्कनी के साथ हुआ। गुरू नानक ने सिख धर्म की स्थापना की और उनके सिद्धांतों में आस्था, सामाजिक न्याय, ईमानदारी और समृद्धि के लिए प्रयास का महत्वपूर्ण सिद्धांत था।
आज, सिख समुदाय गुरू नानक को अपने समुदाय की सर्वोच्च आध्यात्मिक शक्ति के रूप में पूजता है। गुरू नानक ने लगभग 974 भजनों का संग्रह किया।
गुरु नानक देव जी
के उपदेश:
गुरु नानक देव जी ने एक
सर्वभौमिक दृष्टिकोण से सम्वेदना, प्रेम, सद्भावना, और सभ्यता का प्रचार किया। उनकी बानी, जैसे कि जपजी साहिब, मानव को एक सर्वोत्तम जीवन जीने के लिए मार्गदर्शन करती है।
गुरु नानक देव जी ने समाजिक, धार्मिक, और राजनीतिक मामलों में नैतिक उद्धारण के लिए
अपने अद्वितीय ज्ञान को व्यक्त किया।सिख गुरु परंपरा:
गुरु नानक देव जी के बाद, सिख समाज ने उनके अनुयायियों को अपने अनुयायी
गुरुओं का चयन किया। गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु गोविंद सिंह जी तक, गुरुओं ने सिख समाज को अध्यात्मिक ज्ञान,
सेवा, और सम्वेदना में मार्गदर्शन किया।गुरुद्वारा और
लंगर:
गुरु नानक जयंती पर
गुरुद्वारे सजाए जाते हैं, जहाँ भक्त लोग
गुरु ग्रंथ साहिब जी के आगे अर्दास करते हैं और कीर्तन सुनते हैं। लंगर, या समाजिक भोज, हर कोई समूहिक रूप से भाग लेने वाले व्यक्ति को भोजन प्रदान
करता है। यह एक सम्वेदना भरा अनुभव है, जो समाज में एकता और समर्पण की भावना को बढ़ावा देता है।समाजिक एकता और
प्रेम:
गुरु नानक जयंती का मूल
उद्देश्य समाजिक एकता, सद्भावना,
और प्रेम को बढ़ावा देना है। इस अवसर पर लोग
अलग-अलग धर्मों से आकर मिलते हैं और एक दूसरे के साथ प्रेम और सम्वेदना का इजहार
करते हैं। यह एक आध्यात्मिक महोत्सव है जो सभी को एक साथ लाने का प्रयास करता है।सेवा भावना:
गुरु नानक देव जी ने सेवा को एक महत्वपूर्ण
हिस्सा बनाया। इस अवसर पर लोग गुरुद्वारों में सेवा करते हैं, लंगर का प्रबंध करते हैं, और अन्य समाजिक कार्यक्रमों में योगदान देते
हैं। सेवा भावना के माध्यम से लोग एक दूसरे के लिए सहायता करते हैं और सम्वेदना का
भाव बनाए रखते हैं।गुरु नानक जयंती
का विशेष महत्व:
गुरु नानक जयंती
का महत्व यह है कि यह एक आध्यात्मिक पर्व है जो एक अलग सम्वेदना और एक अनुयायी
भावना को जगाता है। इस दिन, लोग गुरुओं की
शिक्षाओं पर ध्यान देते हैं और अपने जीवन में उनके मूल्यों को अमल में लाने की
प्रतिज्ञा करते हैं।गुरु नानक जयंती एक ऐसा अवसर है जिसमें लोग एक दूसरे के साथ प्रेम और सद्भावना को बाँटते हैं और एक आध्यात्मिक मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं। यह सिख समाज के लिए एक उत्सव है, जो समाजिक समृद्धि, एकता, और प्रेम की भावना को बढ़ावा देता है।
गुरु नानक जयंती के इस अद्वितीय मौके पर, हम एक अनोखी कहानी सुनते हैं जो गुरु नानक देव जी और उनके शिष्यों के बीच हुई।
शिष्य ने यह आशीर्वाद सुना, तो भौचक रह गया । उसकी समझ में कुछ नहीं आया । कुछ देर बाद उससे रहा नहीं गया और पूछ ही बैठा की , 'देव! आपने तो बड़े विचित्र आशीर्वाद दिए हैं। आपने आदर करने वालो को "उजड़ जाने" का आशीर्वाद दिया है, जबकि तिरिस्कार करनेवालो को "आबाद रहने का" । मेरी समझ में तो कुछ भी नहीं आया । कृपया स्पष्ट करें ।
शिष्य के इस प्रकार पूछने पर नानक देव बोले, 'सज्जन लोग उजड़ेगे, तो वे जहां भी जायेगे, अपनी सज्जनता के कारण उत्तम वातावरण बना लगे, किन्तु दुर्जन यदि अपना स्थान छोड़े, तो वे जहां जायेगा, वही का वातावरण दूषित करेगे, इसलिए मैंने ऐसा आशीर्वाद दिया ।' शिष्य संतुष्ट होकर चरणों में झुक गया ।
एक ओंकार सतिनामु करता पुरूखु
निरभउ निरवैरू अकाल मूरति अजूनी सैभं गुरू प्रसादि।
आदि सच जुगादि सचु।
है भी सचु नानक होसी भी सचु।
।। श्री गुरू ग्रन्थ साहबजी ।।
ईश्वर एक है अर्थात् अद्वितीय है सृष्टिकर्ता, अभय, निर्वैर और काल से परे है इसलिए नित्य है यानी सदा रहने वाला है, अयोनि है यानी जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त है, स्वंयभू ‘स्वयं प्रकट होने वाल‘ है और गुरू कृपा से ही उपलब्ध हो सकता है। वह प्रभु ‘वाहि गुरू‘ ही एक मात्र सत्य स्वरूप है। जब कुछ नहीं था तो भी उसकी सत्ता थी, चारों युगों से भी पूर्व यह विद्यमान था, आज भी है और भविष्य में भी उसी की सत्ता स्थिर रहेगी।
श्री गुरूनानक देवजी महाराज फ़रमाते हैं कि इस समस्त सृष्टि का रचियता ईश्वर एक है और उसके सिवा कोई और ईश्वर नहीं। वह कालातीत है यानी भूत, भविष्य और वर्तमान काल से परे है इसीलिए उसे ‘अकाल‘ और ‘महाकाल‘ भी कहा गया है। वह ईश्वर ‘सत‘ ‘सत्य‘ है क्योंकि तीनों काल में रहने वाला है, वह ईश्वर ‘श्री‘ ‘सुन्दर और परम ऐश्वर्यवान‘ है और वही ‘अकाल‘ ‘महाकाल यानी मित्र‘ है इसीलिए सत्यं, शिवं और सुन्दरं को ‘सत श्री अकाल‘ कहा गया है।
ऐसे परमेश्वर का जो निरन्तर सुमिरन ‘स्मरण‘ करे, ध्यान करे उसका कल्याण होता है, वह निहाल हो जाता है इसीलिए प्रेम से बोलिए -
जो बोले सो निहाल ! सत श्री अकाल !!